Friday, June 12, 2009

Cohen, Dylan and the time it takes to write a song...

"He said, 'I like this song you wrote called Hallelujah.' In fact, he started doing it in concert. He said, 'How long did that take you to write?' And I said, 'Oh, the best part of two years.' He said, 'Two years?' Kinda shocked. And then we started talking about a song of his called I And I from Infidels. I said, 'How long did you take to write that.' He said, 'Ohh, 15 minutes.' I almost fell off my chair. Bob just laughed."

"You say I took the name in vain
I don't even know the name
But if I did, well really, what's it to you?
There's a blaze of light
In every word
It doesn't matter which you heard
The holy or the broken Hallelujah"

"Took an untrodden path once, where the swift don't win the race,
It goes to the worthy, who can divide the word of truth.
Took a stranger to teach me, to look into justice's beautiful face
And to see an eye for an eye and a tooth for a tooth.
I and I

In creation where one's nature neither honors nor forgives.
I and I
One says to the other, no man sees my face and lives."

Tuesday, June 9, 2009

और आज लिखा कुछ मानव की कविताओं जैसा...

और एक सच, शब्द या शक़्स पड़ा रहा…

कबाड़ में पड़ें सारे ऐर्यलों जैसा, जिन्होंने बहोत दुनिया खुदसे गुज़रते देखि है, पर जिनका अपना कोई एहसास नहीं, अभिमत नहीं, अभिप्राय नहीं.

उस अभिमत जैसा, जिसके बनते ही उसकी समापन तिथि निश्चित कर देना उसके बनानेवाले का फ़र्ज़ है.

उस देय तिथि जैसा, जिसके भूल से छूट जाने पर रिलायंस का गूंडा आपके दरवाज़े दस्तक देकर आपको ज़लील करने की कोशिश करता है.

उस ज़लीलियत जैसा, जिस पर एक बार आपकी माँ तक कह दे, “पर बेटा, ग़लती तो तुम्हारी ही थी”… जो अगर आप अटके रहो तो नासूर बन जाए, और आप बहते रहो तो चुटकुला.

उस चुटकुले की तरह जो कटाक्ष है, व्यंगमय है, बहोत ही हास्यास्पद है, और जो आप बीता होने के बावजूद उसे खुल्लेआम सबको सुनाना कानूनन झुर्म है.

उस झुर्म की तरह जो आप न चाहते हुए भी कर देते हो, हांफ जाते हो कोर्ट के चक्करों में, और फिर अपने मनपसंद पुस्तकालय के मेक्डोनाल्डीकरण और अपने बच्चों की तालीम के दिज़्नियावर्तन से समझौता कर लेते हो.

उस समझौते की तरह जो पहले न चाहते हुए ही सही, पर बाद में आदत और आखिर आनंद बन जाता है.

उस आदत की तरह जो विन्डोज़ के नए version को पहले कुछ महीनो तक ठुकराने के बाद उसे अपना लेने पर हो जाती है... मायक्रोसोफ्ट वर्ड की बिना पूछे ही शब्द ठीक कर डालने की बुरी आदत की तरह, जिसकी आलोचना नहीं की जा सकती क्योंकि उस आदत को बदलने का विकल्प आपके पास है, छिपा ही सही.

उस विकल्प भ्रम की तरह जो आपको टीवी पर, शौपिंग मॉल में, या किसी Café में उपलब्ध होता है... और पूछने पर कि फलानी और धिकनी काफ़ी में क्या फ़र्क है, एक नवसिखिया भोला सा बेरा आपको बता देता है "कोई नहीं".

उस फ़र्क की तरह जो काले गोरों में, हुतू तुत्सी में, अरब इज़्राएलि में, अंग्रेज़ी संविधानिक एकाधिपत्य और भारतीय लोकतंत्र में है और नहीं.

उस होने और न होने जैसा जो प्रश्न में क्रांति का है, विचार में निर्माण का, और अनुभव में मृत्यु का.

उस मृत्यु जैसा जिसका भय मानव कल्पना में भगवान् को जन्म देता है.

उस जन्म जैसा जिसके आदि में प्यार भरा संभोग नहीं पर बलात्कार की आशंका है, और अंत में वातावरण में मिल जाना नहीं, प्रलय की चेतावनी है.

बहोत हो गया इसके जैसा उसके जैसा! कविता को इतना seriously कौन बेवकुफ़ लेता है!


Saturday, June 6, 2009

You are not a person, you are a colony!

There are more bacteria in a human body than cells. Very little is yet understood about what these billions of lives are doing exactly in the human body, except of course, living off it and sometimes, helping it live. Life itself has been seen as a state of a body to avoid completely merging into its environment.

These interested me:

Friday, June 5, 2009

Handbags And Lingo

In case you are wondering...

Handbags And Lingo
is an anagram of
Anand Gandhi's Blog

"So what becomes of you my love,
When they have finally stripped you of
The handbags and the gladrags
That your grandad had to sweat
So you could buy..."

Sound proof

She married a man who forwards his mail
For good luck, and plays Voodoo
He’s queened the pawn while you’re still rooking

Vagueness gives a chance to move
But they have found a way to prove
That the world exists even when nobody’s looking

A motherless child taught me to
Live without the fear of loss through
The empty space, as you go Peter Brooking

I’ve lost many a sisters to distance
And I lost my thesis against a haiku
So I construe I shouldn’t have been snoozing

I’ve lost enlightenment to virtue
Well, who told you it was ever true
That somebody wins when somebody’s losing?